एक अदना सी लड़की
एक अदना सी लड़की , जिसकी सोच बड़ी विशाल , समंदर की तरह शान्त , अपार , वह स्वयं ही एक कल्पना की तरह !
जिसका वास्तविक दुनियाँ से कोई ताल्लुक़ ही न था | वो रहती तो कहीं भीड़ में , मगर उसके मन का हंसा , कहीं और ही विचरण करता ! जाने किस चीज की तलाश में भटक रही थी |
बचपन से ही अपने व्यक्तित्व को सजा रही थी , सँवार रही थी | शारीरिक रूप से परिपक्व न थी , मगर मानसिक रूप से बहुत परिपक्व थी , उसके विचारों में विशालता थी |
वो इतनी काल्पनिक की सोचती की , जो में सोचती हूँ , मेरे साथ वही होगा , कल्पनाओं में जीती , और कहती अच्छा अच्छा सोचो , सोचने में क्या बुरा है , सोचेंगे तभी तो होगा |
जमीन पर तो , वह कभी रहती ही न थी , उमंगें इतनी की हर वक़्त उड़ती ही रहती , मगर सिर्फ अपनी सोच और अपनी कल्पनाओं में ! कभी कहती की धरती से आकाश तक का सफर तय करेगी ! आज कल खुद से भी प्यार करने लगी थी , थोड़ा वक़्त निकाला था खुद क लिए भी , और जब खुद से प्यार किया तो पता चला , में भी ख़ूबसूरत हूँ ! अब तो उसकी बातों का ठिकाना ही न था , कहने लगी , मुझसे खूबसूरत तो ,कोई है ही नहीं , जानती ही न थी की वह भी खूबसूरत है , शायद इसलिए!
इतनी काल्पनिक थी की , जीवन में उसके कल्पना के अलावा , वास्तविकता का नामोंनिशान भी न था | भीड़ में भी , सबसे परे
प्रत्यक्ष है , मगर फिर भी , न थी , बस अपनी ही दुनियाँ में अकेले चलती रही ! जाने की चीज की तलाश में |
एक अलग ही अपने कल्पनाओं की दुनियां सजाई थी ! उस अदना सी लड़की ने , जिसमे अकेले ही अपने मनमतंग घूमती रहती थी |
वह अदना सी लड़की , अपनी इस काल्पनिक दुनिया को किसी भी सूरत में , वास्तविक बना लेना चाहती थी जिसके लिए वह खुद ही गुमनाम सी हो गई ,कहीं , अपनी ही तलाश में !
वो खुद तो बहुत साधारण , मगर उस अदना सी लड़की कि सोच वेहद असाधारण !
वह सोचती की ,
अपने व्यक्तित्व को इतना सजाओ , इतना सँवारो , की चमक उठे , चेहरे में चमक झूठ , पहनावा में चमक छलमात्र ! जब आपके व्यक्तित्व की चमक अपनी छटा बिखेरेगी तो , चेहरा और पहनावा स्वतः ही चमक उठेगा |
वह अदना सी लड़की, अपने व्यक्तित्व को किसी खूबसूरत चित्र की तरह गढ़ती रही , भिन्न - भिन्न प्रकार के रंगों से | उसकी सोच में इतना लचीलापन था ! हर वक़्त , है डगर पर परिस्थति के हिसाब से चलती रही , मगर चलती रही | वेसक वह मौन थी , उसकी आवाज में कोई शोर न था , मगर अप्रत्यक्ष रूप से , फिर भी , बहुत तेज शोर था !
चल रही थी धीरे धीरे अपनी ही धुन में , मग्न अकेले !
वह सोचती की , जिंदगी के इस सफर में रुक जाने का मतलब है , अपनी अवनति को गले लगाना , और स्वयं ही अपना पतन सुनिश्चित कर देना |
और यूँ ही , अपने विचारों और अपने व्यक्तित्व को रोज रोज सींच कर , हरा भरा करती , सजती रही , निःशब्द , मौन , यूँ ही चलती रही , वक़्त की हर चोट के साथ कदम मिलाकर |
और किसी जुलाहे की तरह करघे पर , अपनी कल्पनाओं के सुन्दर,सुन्दर , रंग बिरंगे , धागे जोड़कर , बुनती रही सुन्दर सूत अपने ख़्वाबों का !
थान अपने ख़्वाबों का बन लिया था , इतना लम्बा , की अर्ज़ नहीं मिल रहा था कहीं ! और भटकती रही उसकी तलाश में !
एक अदना सी लड़की |