Friday, October 18, 2019

KHWAAB ,,,,,,

ख्वाब ,,,,,





कुछ ख्वाब मन मैं ही दबे रह गए थे ,
कुछ अरमां जो हम , उठते ,बैठते ,
चलते , फिरते  संजोते रहे ,,,
कुछ बातें जो जुवां  न कह सकी,
कुछ कहे अनकहे शब्दों को बेझिझक ,
वयां कर दिया ,,,,
कलम का ऐंसा सहारा मिला ,
की जुवां की भी जरुरत नहीं ,
कलम नें  ऐंसा संभाला हमें ,
पूरे राज कह डाले हमने ,
क्यों , होठों पर मुस्कराहट  न  थी ,
क्यों,  कदम भी स्तब्ध थे ,
अपने नाम  से , ऐंसा प्रेम था हमे ,
की ,जी करता है , क्या कर दूँ ,
तुझे पाने के लिए ,
एक पल के लिए भी ,
कदम न लड़खड़ाए ,
हाँ , कभी हीनता सी जरूर  ,
पनपी मन मैं ,
मगर , आज हम फिर चल पड़े ,
अपने सफर पर ,
आज मेरे क़दमों मैं रवानी है ,
मेरे ख्वाबों मैं , जान ,
और फिर खिल उठा मेरा मन ,
मेरे मन मैं ,बहार है ,
जो फिर पक्षियों की ही तरह ,
उड़ान भरने के लिए तैयार है ,,,,,,



       

1 comment:

  1. As My this poem all goes reported as abusive, wanna know from all the viewers Please let m know what is abusive on this poem?

    looking forward for your reply

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