नारी हूँ अबला नहीं ,,,,
छोड़ आई मैं अपना घर आँगन ,
तेरा घर महकाने को ,
घर संसार बसाकर तेरा ,
तुझे ही सर्वस्व बनाया है ,
मगर ,,
नारी हूँ अबला नहीं ,
दुर्वल समझने की भूल न कर ,
शक्ति का स्वरुप हूँ ,
तिनका समझने की भूल न कर ,
क्या हो तुम क्यों इतना अभिमान ,
अपने पुरूषत्व पर गुमान न कर ,
नारी का अपमान न कर ,
कैसे सोच लिया ये तुमने ,
यह तो होती है , अस्तित्वहीन ,
कभी भी रौंदा जा सकता है ,
कैसे सोच लिया ये तुमने ,
यह तो होती है , अस्तित्वहीन ,
कभी भी रौंदा जा सकता है ,
नारी हूँ अबला नहीं ,
दुर्वल समझने की भूल न कर ,,,,,
हर क्षेत्र मैं अव्वल है , नारी ,
पूरा ब्रम्हाण्ड नारी की ,
ताकत से अवगत है ,
जमीं से लेकर आकाश तलक ,
नारी नें परचम लहराया ,
और अपना लोहा मनवाया ,,
इतिहास गवाह है नारी के ,
करतब का , कभी सुना है,
रजिया ,मनु , और दुर्गा की कहानी ,
नारी हूँ , अबला नहीं ,
दुर्वल समझने की भूल न कर ,,,,,,,,,,
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