तिरस्कार ,,
नवल शीर , नवल नीर ,
नवल कंचन सी काया ,
ईश्वर रूपी नन्हीं सी जान ने ,
बेटी बनकर दुनियाँ मैं ,
तिरस्कार ही तो पाया ,
ऐंसी भी क्या तुझे घृणा ,
दुनियाँ ही न देखने दी ,
गर्भ मैं ही मेरा अस्तित्व मिटाया ,
सृजन करो तुम बेटी का ,
क्यों तुम भूल गए ,
तुमको भी तो किसी ,
बेटी ने जन्मा है ,
क्या तुमको अपनी माता का भी,
अस्तित्व मिटाना है ,
बेटी बनकर दुनियाँ मैं ,
तिरस्कार ही तो पाया है ,
छोड़ गई माँ , मेरी मुझको ,
जब तुमको मुझे ,अपने हृदय से लगाना था ,
अपनी पलकों की छाँव मैं सुलाना था ,
ऐंसे अनमोल पल की क्या तुम्हें नहीं थी चाह ,
छोड़ गई तुम मुझको सड़कों पे ,
दरिद्रता से आलम्बन को ,
ऐंसा छुड़ाया दामन मुझसे ,
मुड़कर भी न देखा ,
इसमें मेरी क्या गलती हो गई ,
यह तो था तेरी किस्मत का लेखा ,
और शायद मेरे भी नसीब मैं न था ,
तेरी गोद मैं सोना ,
कितने दिनों से भूखी हूँ ,
न कुछ पिया , न खाया है ,
न सर पर छत है मेरे ,
न माँ बाप का साया है ,
बेटी बनकर दुनियाँ मैं ,
तिरस्कार ही तो पाया है ,,
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