अविस्मरणीय पल ,,,
मेरे कैनवास के कुछेक रंग '' मैं और मेरी दादी '
हमारी तस्वीर तो बहुत रंगीन है , कुछेक रंगों का एहसास बता रही हूँ। मेरी कैनवास के कुछेक रंग ' मैं और मेरी दादी' कुछेक रंग
कहूँ या हर रंग इनसे ही रचा बसा है , एक अलग ही कहानी है हमारी , दादी की आँख का तारा हूँ मैं , और दादी भी मेरी आँखों
का तारा हैं।यहीं कोई पैंसठ बरस की हैं मेरी दादी , ऊँची कद -काठी , गोरी चिट्टी , तन्दरुस्त ,बस बाल पूरे सफेद हैं 'अंग्रेजन '
जैसे। बहुत लम्बा वक़्त हो गया है उनसे मिले हुए , मगर यूँ लगता है , मानो यही कहीं हैं , मगर सिर्फ दिल की तसल्ली।
आज कल तो बड़ी कबायद हो गई है आने जाने की , इतने दूर जो आ गए हूँ ,,, बहरहाल विडियो कॉल पर बात हो
जाती है। देख लेते हैं एक दूसरे को कभी - कभार। अरसे बीत गए हों , उस बात को ,लगता है।, जैसे , जब दादी के साथ ही
सोना होता था , दादी के साथ ही खाना होता था , दादी कहीं जाने को तैयार क्या हुईं , हमें भी जाना होता था।
का तारा हैं।यहीं कोई पैंसठ बरस की हैं मेरी दादी , ऊँची कद -काठी , गोरी चिट्टी , तन्दरुस्त ,बस बाल पूरे सफेद हैं 'अंग्रेजन '
जैसे। बहुत लम्बा वक़्त हो गया है उनसे मिले हुए , मगर यूँ लगता है , मानो यही कहीं हैं , मगर सिर्फ दिल की तसल्ली।
आज कल तो बड़ी कबायद हो गई है आने जाने की , इतने दूर जो आ गए हूँ ,,, बहरहाल विडियो कॉल पर बात हो
जाती है। देख लेते हैं एक दूसरे को कभी - कभार। अरसे बीत गए हों , उस बात को ,लगता है।, जैसे , जब दादी के साथ ही
सोना होता था , दादी के साथ ही खाना होता था , दादी कहीं जाने को तैयार क्या हुईं , हमें भी जाना होता था।
मैं अक्सर जिद करके , ननिहाल दादी की माँ के यहाँ जाया करती थी बल्कि वह हर जगह जहाँ भी वह जाती थीं। कई बार तो
ऐसा होता था दादी भी मेरे साथ ही मिल जाती थी , और मुझे ,, जब भी उनको कहीं जाना होता था तब ,, घर के बाकि छोटे
बच्चे परेशान न करें ,, उनको पता न चले की मैं भी दादी के साथ जा रही हूँ ,, मुझे पहले ही रस्ते मे आगे मोड़ पर भेज देती थीं
और वहां से फिर हम चले जाते थे घूमने।अब तो यह शरारत भी नहीं होती। दादी मेरी समंदर मैं किसी जादुई नाव की तरह हैं ,
जो तेज तूफान बबंडर से भी चुटकियों मैं निकाल देतीं या यूँ कहूँ कोई अलादीन का चिराग की तरह हैं , जो , मैं जो माँगू , वह
किसी भी तरह उपलब्ध करने की कबायद मैं लग जाये , और मैं भी कोई काम थोड़ी न थी , दादी को भी अलादीन के चिराग की ही तरह घिसती थी।
यूँ ही अनायास सोचने लगी थी और पूर्व स्मृतियाँ आँखों मैं झूलने लगीं , और मैं स्नेहसिक्त हो आत्मविस्मृत हो गई।
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