Friday, October 4, 2019

CHAL PADE HAIN LAMBE SAFAR PE



          

               सफर 

     



















        चल पड़े हैं लम्बे सफर पे , तो पहुँचेंगे भी ,
        राह मैं मोड़ अनेक हैं ,
        पर मंजिल तो एक है ,,,,,,
        पंक्षी सा कैद था , पिंजरे मैं ,मन का ,
        आज निकला है ,नभ मैं ,
         आजादी के तिमिर मैं गुम होकर ,
          कभी इस डाल पर , कभी उस डाल  पर ,
          खेल रहा , चंचल मन से ,
          कैसे व्यक्त करूँ ,पंक्षी से ,मन की चंचलता ,
         आज मैं आजाद हूँ ,
         हर ख्याल भी आजाद है ,
         चल पड़े हैं लम्बे सफर पे , तो पहुँचेंगे  भी ,
         राह मैं मोड़ अनेक हैं ,
         पर मंजिल तो एक है ,,,,,,
         फिर पैदा  हुई ,मन मैं बिड़म्बना ,
          उठती एक हिलोर  सी ,
          घबरा जाता पंक्षी मन का ,उड़ान से ,
         फिर मन ही उसको समझाता ,
         पंख फैलाये पंक्षी से मन के ,
          और कहा , चल उड़ , फिर चलें नील गगन मैं ,
          इस पिंजरे की कैद से ,
         चल पड़े है लम्बे सफर पे , तो पँहुचेंगे भी ,
         राह मैं मोड़ अनेक हैं , 
         पर मंजिल तो एक है ,,,,,,,,,,,,


                                            

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