एक अच्छी ऊर्जा और इर्ष्या ,,,,,
बात करती है , तो कहती है की ,
उगते हुए सूरज के प्रकाश की ,
किरणों के प्रकीर्णन , को रोक पाना ,
तेरे बस की बात नहीं ,,,,,,
थम भी जाएँ बारिशें ,घनघौर तो क्या ,
प्रचंड हवाओं की लहरों को क्षेण पाना ,
तेरे बस की बात नहीं ,,,,
और जब इश्क़ हो मुसाफिर को ,
मंज़िल से अपनी ,और पाना हो उसको ,
दिल मैं बारूद सा भरकर ,
निकला है मुसाफिर ,
इरादों मैं दहकते शोलों को ,
ठंडा कर पाना ,
तेरे बस की बात नहीं ,,
कितनी भी अड़चनें डालेगा ,
मेरी राह मैं ,
मैं तो हूँ ,आवारा पंक्षी ,
उड़ जाऊँगा , इन बादलों से भी ऊपर ,
इन घनघौर हवाओं को भी ,
काट सकता हूँ ,
मेरा रास्ता मोड़ पाना ,
तेरे बस की बात नहीं ,,,,,
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