विरह वेदना ,,,,,
कितनी विरह , कितनी वेदना ,
कितनी मिलन की पिपासा ,,,,
कितने अश्रु दृगों मैं ,
पलकें बिछाएँ करते इंतजार ,
हृदय घिरा घनघौर तिमिरमय ,
तिमिरमय मेरा संसार तुम बिन ,
कितनी विरह , कितनी वेदना ,
कितनी मिलन की पिपासा ,,,,,
भर जाता हृदय मैं उन्माद सा ,
घुल जाता होंठों मैं बिषाद सा ,
कितनी विरह , कितनी वेदना,
कितनी मिलन की पिपासा ,,,,,
आंखें पथरीली हो गईं ,
पलकें हुई निर्झरिणी ,
पीड़ा कुछ कम न हुई ,
हृदय चितवन बिच्छिन्न हुआ ,
कलियाँ सारी मुर्झा गईं ,
छा जाता हृदय मैं विराग सा ,
कितनी विरह , कितनी वेदना ,
कितनी मिलन की पिपासा ,,,,,
नींद से सूनी पलकें ,
तेरी यादों की परछायीं ,
चिर उन्नींदी मेरी निशाँ ,
कितनी विरह ,कितनी वेदना ,
कितनी मिलन की पिपासा ,,,,,,
विरह की यह वेदना ,
विरह का क्रंदन मेरा ,
एक करुण भाव से ,
गूंजता उर मैं न जाने ,
मधुर स्वर अलापता ,
कितनी विरह ,कितनी वेदना ,
कितनी मिलन की पिपासा ,,,,,,
क्रंदन से आहत हृदय हुआ ,
तनिक भी आराम न ,
नीर भरा ,एक आह भरा ,
प्रतिपल, प्रतिक्षण मेरा ,
अनुराग भी उन्माद सा ,
संगीत की लयमय अनुभूति ,
उन्माद भरी बेस्वाद सी ,
कितनी विरह ,कितनी वेदना ,
कितनी मिलन की पिपासा ,,,,,,,
पलकों पर हैं पल रहे ,
स्वप्न प्रियतम से मिलन के ,
नैन थक थक चूर हुए ,
तेरा पथ निहार कर ,
चिर उन्माद उर मैं समाया ,
कट गया घनघोर तिमिर ,
आस जागी फिर मिलन की ,
प्यासी थी पपीहे की तरह ,
स्वाति की एक बूँद को ,
कितनी विरह ,कितनी वेदना ,
कितनी मिलन की पिपासा ,,,,,,
नैन मगन हो गए ,
झर झर बरसने लगे ,
दृगों से मोती !
पलकें सजी हैं व्रीड़ा के गहनों से ,
होंठों ने मुस्कुरा कर कहा ,
मेरा सर्वस्वा तो तुम ही हो ,बस तुम ही हो ,,,
कितनी विरह , कितनी वेदना ,
कितनी मिलन की पिपासा ,,,,,,,,
VIRAH VEDNA
हृदय घिरा घनघौर तिमिरमय ,
तिमिरमय मेरा संसार तुम बिन ,
कितनी विरह , कितनी वेदना ,
कितनी मिलन की पिपासा ,,,,,
भर जाता हृदय मैं उन्माद सा ,
घुल जाता होंठों मैं बिषाद सा ,
कितनी विरह , कितनी वेदना,
कितनी मिलन की पिपासा ,,,,,
आंखें पथरीली हो गईं ,
पलकें हुई निर्झरिणी ,
पीड़ा कुछ कम न हुई ,
हृदय चितवन बिच्छिन्न हुआ ,
कलियाँ सारी मुर्झा गईं ,
छा जाता हृदय मैं विराग सा ,
कितनी विरह , कितनी वेदना ,
कितनी मिलन की पिपासा ,,,,,
नींद से सूनी पलकें ,
तेरी यादों की परछायीं ,
चिर उन्नींदी मेरी निशाँ ,
कितनी विरह ,कितनी वेदना ,
कितनी मिलन की पिपासा ,,,,,,
विरह की यह वेदना ,
विरह का क्रंदन मेरा ,
एक करुण भाव से ,
गूंजता उर मैं न जाने ,
मधुर स्वर अलापता ,
कितनी विरह ,कितनी वेदना ,
कितनी मिलन की पिपासा ,,,,,,
क्रंदन से आहत हृदय हुआ ,
तनिक भी आराम न ,
नीर भरा ,एक आह भरा ,
प्रतिपल, प्रतिक्षण मेरा ,
अनुराग भी उन्माद सा ,
संगीत की लयमय अनुभूति ,
उन्माद भरी बेस्वाद सी ,
कितनी विरह ,कितनी वेदना ,
कितनी मिलन की पिपासा ,,,,,,,
पलकों पर हैं पल रहे ,
स्वप्न प्रियतम से मिलन के ,
नैन थक थक चूर हुए ,
तेरा पथ निहार कर ,
चिर उन्माद उर मैं समाया ,
कट गया घनघोर तिमिर ,
आस जागी फिर मिलन की ,
प्यासी थी पपीहे की तरह ,
स्वाति की एक बूँद को ,
कितनी विरह ,कितनी वेदना ,
कितनी मिलन की पिपासा ,,,,,,
नैन मगन हो गए ,
झर झर बरसने लगे ,
दृगों से मोती !
पलकें सजी हैं व्रीड़ा के गहनों से ,
होंठों ने मुस्कुरा कर कहा ,
मेरा सर्वस्वा तो तुम ही हो ,बस तुम ही हो ,,,
कितनी विरह , कितनी वेदना ,
कितनी मिलन की पिपासा ,,,,,,,,
VIRAH VEDNA
No comments:
Post a Comment