तृष्णा और जुनून,
कभी कभी व्यक्ति को,
अपने नाम से भी प्रेम हो जाता है ,
अपने नाम से भी प्रेम हो जाता है ,
ये वह तृष्णा है ,जिसकी अनदेखी चमक ने ,
मेरी आँखे चकाचौंध कर दी ,
और जिसके पीछे ,पागलों की तरह रेंगते रहे हम ,
फिर दिल ने कहा , अपने जज्बातों को बहने दो ,
दिल को खोल दो , हर्ज़ ही क्या है इसमें ,
बादलों से पंख उधार ले और आकाश की सैर कर ,
जमीन के जर्रे जर्रे ,
दिल , दीवार , दरख़्तों को ,रोशन होने दे
दिल , दीवार , दरख़्तों को ,रोशन होने दे
भूत को भूल जा , वर्तमान जी ले ,
और भविष्य पर निगाह रख ,
और भविष्य पर निगाह रख ,
कुछ करने का जुनून , तो पैदा कर दिल मैं ,
मगर इतना भी नहीं ,
की खुद ही स्तब्ध हो जा ,
और छीन ले मुस्कराहट अपने ही होंठो से ,
क्षणिक भी निराश न हो ,
तनिक भी हीनता न पनपे मन मैं ,
खुद पर विश्वास रख ,और धीरे धीरे चलता चल ,
मगर चल ,
तूँ एक पथिक है ,
और पथिक बस अड़िग है ,
मंजिल खुद तेरे कदम चूमेगी ,,,,,,,
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