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तूँ सिर्फ तूँ है , कभी खुद से भी प्यार कर ,,,,
तूँ सिर्फ तूँ है , कभी खुद से भी प्यार कर , कभी खुद को भी जान ले ,
छोड़ दे जीना दिखावटी , है जो ये झूठी मुस्कान , तेरे होंठों पर ,
तिलमिलाहट तेरे मन की , बिखर रही , बनके मुस्कराहट होंठों पर ,
कितना भी चोटिल हृदय तेरा ,तनिक भी शिकन न चेहरे पर तेरे ,
छोड़ दे जीना , दिखावटी !
आज कल तो तेरी स्थिति और भी दयनीय है ,
कहाँ चूड़ी , बिंदी , कंगन , श्रृंगार तेरा ,
और आज तमाम उपालम्भ , उपहास , तुलना , वेदना , से सुसज्जित ,
सुअलंकृत है तूँ ,,,,, तेरी भी तो कुछ ख्वाहिशें थी ,, जिनको तूने अपने हृदय मैं ,
संजोया था , वो कही छिन्न - भिन्न कालकवलित हो गईं !
रौंद दी गईं , भावनाएँ तेरी , लहूलुहान सा तेरा मन ,,, फिर भी ताज़ी है तेरी मुस्कान ,
आँखें भले ही हों नम !
बड़ी ही चतुराई से छिपा लेती है तूँ , उन कीमती मोतियों को अपने आँखों की सीपी में !
या यूँ कहूँ , की अपनी आँखों की नाजुक पलकों के भीतर ही सूखा देती है , उन नमकीन सी ,
बूंदों को ,,, वैसे उनके लिए यही वेहतर है , क्योंकि न ही उनका कोई कदरदान है यहाँ ,
वे तो बस वे मोल है ,,,मगर इतनी सादगी भी अच्छी नहीं ,,, तेरी सादगी से ,,अथाह सागर से गहरे ,,,
तेरे हृदय की गहराई ,, को भी मापा जा सकता है ,, बस उसके लिए आँखों की जरुरत है ,,,
तेरी आवाज की नमी , भी तेरे हृदय की शीतलता की परिचायक है ,,,
ये सादगी , ये शीतलता ही तो वह वजह है ,,,
जिससे झुँझला उठता है हृदय तेरा ,,, सीख कुछ इस झुंझलाहट ,, इस तिलमिलाहट से ,,
खुद को एक चट्टान की तरह बुलंद कर ,,, के आग , पानी , हवा बैहर , न कर पाए तेरा बाल भी बाँका ,
रूंध ले एक कवच सा ,, इर्द - गिर्द अपने , ,,कोई काँटे कटीले चुभ न पाएं तेरे मन को ,,
कोई कटाक्ष , कोई तीक्ष्ण शब्दों के बाण ,, भेद न पाएं , तेरे हृदय को ,,,
अपने आप मैं ही ,, तूँ इतनी शसक्त है ,, चट्टान की तरह अड़िग है ,,
ऐसा अस्तित्वहीन , जिंदालास , मृतकों की तरह जीना भी क्या जीना ??
तूँ सिर्फ खुद से प्यार कर , छोड़ दे जीना दिखावटी ,,,,
कहीं ओझल सा हो गया ,, तेरा आत्मविश्वास ,,
और दूसरों की उपेक्षा एवं अपेक्षाओं का वसेरा हो गया है तुझ पर ,,,
तूँ अपने जीवन मैं ,, नया सवेरा ला ,,,,,,,,,,,,,
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