Sunday, January 26, 2020

surkh syaahi


सुर्ख स्याही 



बड़ी ही बेबाकी से आह  भर रही है ,
किताब के पन्नों की सुर्ख स्याही ,
इतने बरस बीत गए , मगर आज भी वह महक ,
बरक़रार है ,वह खुशबू  , तेरे ज़िक्र  की। 

 ' हमनें तो तुम्हें , जमाने की बंदिशों को ,
लांघकर  स्वीकारा , और तुम एक लफ्ज भी हमे ,
अपना न कह सके '

हमेशा अपनी शर्तों पर जीती रही ,
मगर तुझसे कोई शर्त न रखी। 

ज़िन्दगी एक ढलती शाम बनकर रह गई। 
' अमृता  ' कहती है  '' ये अजनबी तुम मुझे जिंदगी ,
की शाम मैं क्यों मिले , मिलना है तो दोपहर मैं मिलते ''

कभी हम किसी के कैनवास पर उसकी , कल्पना ,
बनकर उकेरे गए ,,,,
कभी सुर्ख स्याही  सी मैं ,,,
कभी उसके कैनवास पर एक रहस्यमयी  लकीर  ,
बनकर रह गई  ,, खामोश सी ,,
और उसे एक टक  देखती रही ,,,
खामोश एक टक  देखते रहना ,
तुम्हें क्या लगता है , कोई सजा है !
यूँ ही निःशब्द तुम्हारे करीब ,
बैठे रहना ही शायद ,
हर मर्ज़ की दवा है ,,,,

आंसुओं से तर , सनी हुई  , मेरी हर शाम ,
गुमशुदाई  की चादर सी तन गई है , मुझ पर ,,
ग़ुम  हो जाना चाहती हूँ  , इस चादर मैं ही लिपटकर ,
सफर मैं अकेले इस तरह , चलने की अब चाह नहीं ,,,,

बेख्याली के लिए  , इतना मशहूर हो गए है ,
हम भी गए ,,,
बस मौन है , कागज कलम ,, और सुर्ख स्याही ,,,,,



Thursday, January 23, 2020

mere canvas ke kuchhek rang ,,' main aur meri dadi '

अविस्मरणीय पल ,,,



मेरे कैनवास के कुछेक रंग  '' मैं और मेरी दादी ' 


हमारी तस्वीर तो बहुत रंगीन है , कुछेक रंगों का एहसास बता रही हूँ।  मेरी कैनवास के कुछेक रंग ' मैं और मेरी दादी' कुछेक रंग

कहूँ या हर रंग इनसे ही रचा बसा है , एक अलग ही कहानी है हमारी , दादी की आँख का तारा हूँ मैं , और दादी भी मेरी आँखों

का तारा हैं।यहीं कोई पैंसठ बरस की हैं मेरी दादी , ऊँची कद -काठी , गोरी चिट्टी , तन्दरुस्त  ,बस बाल पूरे  सफेद हैं  'अंग्रेजन '

जैसे।   बहुत लम्बा वक़्त हो गया है उनसे मिले हुए , मगर यूँ लगता है  , मानो यही कहीं हैं , मगर सिर्फ दिल की तसल्ली।

आज कल तो बड़ी कबायद हो गई  है आने जाने की , इतने दूर जो आ गए हूँ ,,, बहरहाल विडियो कॉल  पर बात हो


जाती है। देख लेते हैं एक दूसरे को कभी - कभार।  अरसे  बीत गए हों , उस बात को ,लगता है।, जैसे , जब  दादी के साथ ही

सोना होता था , दादी के साथ ही खाना होता था , दादी कहीं जाने को तैयार  क्या  हुईं  , हमें भी जाना होता था। 

मैं अक्सर जिद करके , ननिहाल दादी की माँ  के यहाँ जाया करती थी बल्कि वह हर जगह जहाँ भी वह जाती थीं।  कई बार तो

ऐसा होता था दादी भी मेरे साथ ही मिल जाती थी , और मुझे ,, जब भी उनको कहीं जाना होता था तब ,, घर के बाकि छोटे

बच्चे परेशान न करें ,, उनको पता न चले की मैं भी दादी के साथ जा रही हूँ ,, मुझे पहले ही रस्ते मे आगे मोड़ पर भेज देती थीं

और वहां से फिर हम चले जाते थे घूमने।अब तो यह शरारत भी नहीं होती।  दादी मेरी समंदर मैं किसी जादुई नाव  की तरह हैं ,

जो तेज तूफान बबंडर से भी चुटकियों मैं निकाल देतीं या यूँ कहूँ  कोई अलादीन का चिराग की तरह हैं , जो , मैं जो माँगू , वह


किसी भी तरह उपलब्ध करने की कबायद मैं लग जाये , और मैं भी कोई काम थोड़ी न थी , दादी को भी अलादीन के चिराग की ही तरह घिसती थी।  
   
 यूँ ही अनायास सोचने लगी थी और पूर्व स्मृतियाँ आँखों मैं झूलने लगीं , और मैं स्नेहसिक्त हो आत्मविस्मृत हो गई। 

Tuesday, January 14, 2020

nayi nayi dosti kalam se meri ,,,,

नयी नयी दोस्ती कलम से मेरी ,,,,




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मैं ज़िंदगी का हर फ़लसफ़ा ,
तुझसे ही इख़्तियार करूँ ,
मेरी ' कलम ' तुझसे बेहतर ,
कोई और मेरा ज़ानिब नहीं ,,,,

मैं भी तन्हा, मेरा हर ख़याल भी तन्हा ,
तो सोचा, क्यों न साथ चलें ,
दिल की तसल्ली के लिए ,
ये ख़याल अच्छा है ,,,,,,



AAGE BADH TU,,,,

Motivational Hindi poems

आगे बढ़ तूँ ,,,,


तिनका ,तिनका जोड़कर ,
करे निर्मित नव नीड़ ,
तार तार बिखरे हों चाहे ,
जाने किस विधि जोड़कर !
तूँ भर दे  ' मधुर ' संगीत ,
फिर भी , जाने क्यों ये संसार ,
तुझे अबला ही पुकारे ,,
चल रहा जबकि , तेरे ही सहारे !
लग गए तेरी मुस्कुराहटों पर भी 
विराम चिन्ह !
पौंछ आँसुओं  के ढ़र्रे ,
बह रहे हैं ,जो कोरों से तेरे ,
तोड़ निर्बल का घरौंदा ,
हृदय मैं अन्तर्निहित शक्ति की ,
सुन आर्त पुकार ,
छोड़ अपना चीखों से भरा विलाप तूँ ,,
त्रस्त नहीं तारणहार बन ,
आँसुओं को पीछे छोड़ ,
आगे बढ़ तूँ  , आगे बढ़ तूँ ,,,,,,,,



Friday, January 10, 2020

AETICALE - TU SIRF TU HAI , KABHI KHUD SE BHI PYAAR KAR ,,,,

आर्टिकल 

तूँ सिर्फ तूँ है , कभी खुद से भी प्यार कर ,,,,


तूँ सिर्फ तूँ है , कभी खुद से भी प्यार कर , कभी खुद को भी जान ले ,

छोड़ दे जीना दिखावटी , है जो ये झूठी मुस्कान , तेरे होंठों पर ,
तिलमिलाहट तेरे मन की , बिखर रही , बनके मुस्कराहट होंठों पर ,
कितना भी चोटिल हृदय तेरा ,तनिक भी शिकन न चेहरे पर तेरे ,
छोड़ दे जीना , दिखावटी  ! 
Image result for women paintings indianआज कल तो तेरी स्थिति  और भी दयनीय है ,
कहाँ चूड़ी , बिंदी , कंगन , श्रृंगार तेरा , 
और आज तमाम उपालम्भ , उपहास , तुलना  , वेदना , से  सुसज्जित ,
सुअलंकृत  है तूँ ,,,,, तेरी भी तो कुछ ख्वाहिशें थी ,, जिनको तूने अपने हृदय मैं ,
संजोया था , वो कही छिन्न - भिन्न  कालकवलित हो गईं  !
रौंद  दी गईं  , भावनाएँ तेरी , लहूलुहान सा तेरा मन ,,, फिर भी ताज़ी है तेरी मुस्कान ,
आँखें भले ही हों नम ! 
बड़ी ही चतुराई से छिपा लेती है तूँ , उन कीमती मोतियों को अपने आँखों की सीपी में !
या यूँ कहूँ , की अपनी आँखों की नाजुक पलकों के भीतर ही सूखा देती है , उन नमकीन सी ,
बूंदों को  ,,, वैसे उनके लिए यही वेहतर है , क्योंकि न ही उनका कोई कदरदान है यहाँ ,
वे तो  बस  वे मोल है ,,,मगर इतनी सादगी भी अच्छी नहीं ,,, तेरी सादगी से ,,अथाह सागर से गहरे ,,,
तेरे हृदय की गहराई ,, को भी मापा जा सकता है ,, बस उसके लिए आँखों की जरुरत है ,,,
तेरी आवाज की नमी , भी तेरे हृदय की शीतलता की परिचायक है ,,,
ये सादगी , ये शीतलता  ही तो वह  वजह है ,,,
जिससे झुँझला उठता है हृदय तेरा ,,, सीख कुछ इस झुंझलाहट ,, इस तिलमिलाहट से ,,
खुद को एक चट्टान की तरह बुलंद कर ,,, के आग , पानी , हवा बैहर , न कर पाए तेरा बाल भी बाँका ,
रूंध ले एक कवच सा ,, इर्द - गिर्द अपने , ,,कोई काँटे  कटीले  चुभ न पाएं तेरे मन को ,,
कोई कटाक्ष , कोई तीक्ष्ण शब्दों के बाण ,, भेद न पाएं  , तेरे हृदय को ,,,
अपने आप मैं ही ,, तूँ  इतनी शसक्त है ,, चट्टान की तरह अड़िग है ,,
ऐसा अस्तित्वहीन , जिंदालास  , मृतकों की तरह जीना भी क्या जीना ??
तूँ  सिर्फ खुद से प्यार कर , छोड़ दे जीना दिखावटी ,,,,
कहीं ओझल सा हो गया ,, तेरा आत्मविश्वास ,,
और दूसरों की उपेक्षा एवं अपेक्षाओं का वसेरा  हो गया है तुझ पर ,,,
तूँ  अपने जीवन मैं ,, नया सवेरा ला ,,,,,,,,,,,,,



ANTARMAN


अन्तर्मन 

डूब गई  , मैं खुद ही , खुद मैं !
कैसे शांत करूँ ?
इस बिचलित बिहंग को !
तड़प उठी , अचला सी मेघों को !
मचल मचल , लहराती  ,
शनैः शनैः जलती दीपक की लौ सी !
जलती रही मैं भी


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डूब गई , मैं खुद ही ,खुद मैं,
खोज रही थी ,
मन की वीणा के तार ,
अपने अंतस मैं बार बार ,
खोज रही थी ,
' मधुर ' श्वर  संगीत ,
अनुराग राग , उन्माद भरा ,
विहँस - विहँस  बिकलित अंतर्मन ,
छिन्न- भिन्न चितवन , मुर्झा गई कलियाँ ,
सूख गए , सब वन - पराग ,
डूब गई , मैं खुद ही , खुद मैं !
अंतर्मन की इस झंझाबात ने ,
घेर लिया दिग्भ्रान्त ,
नीर भरा , नीरस सा मन ,
सागर सी गहराई ,
कैसे पहुँचु तट तीर ,
खोज रही थी ,
हिय मैं अपने ,अपनी आभा को ,
विधु समान कान्ति हो जिसमें ,
पुनीत पावन सा मर्म ,
खंगाल रही थी ,
सागर मैं मोती ,
डूब गई , मैं खुद ही , खुद मैं ! 



    ANTARMAN


Wednesday, January 8, 2020

virah vedna



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विरह वेदना ,,,,,


कितनी विरह , कितनी वेदना ,
कितनी मिलन  की पिपासा ,,,,
कितने अश्रु  दृगों मैं ,
पलकें बिछाएँ करते इंतजार ,
हृदय घिरा घनघौर तिमिरमय ,
तिमिरमय मेरा संसार तुम बिन ,
कितनी विरह , कितनी वेदना ,
कितनी मिलन  की पिपासा ,,,,,

भर जाता हृदय मैं उन्माद सा ,
घुल जाता होंठों मैं बिषाद सा ,
कितनी विरह ,   कितनी वेदना,
  कितनी मिलन की पिपासा  ,,,,,

आंखें पथरीली हो गईं ,
पलकें हुई निर्झरिणी ,
पीड़ा कुछ कम  न हुई ,
हृदय चितवन बिच्छिन्न हुआ ,
कलियाँ सारी मुर्झा गईं ,
छा जाता हृदय मैं विराग सा ,
कितनी विरह , कितनी वेदना ,
कितनी मिलन की पिपासा ,,,,,

नींद से सूनी पलकें ,
तेरी यादों की परछायीं ,
चिर उन्नींदी  मेरी निशाँ ,
कितनी विरह ,कितनी वेदना ,
कितनी मिलन की पिपासा ,,,,,,

विरह की यह वेदना ,
विरह का क्रंदन मेरा ,
एक करुण  भाव से ,
गूंजता उर मैं न जाने ,
मधुर स्वर अलापता ,
कितनी विरह ,कितनी वेदना ,
कितनी मिलन की पिपासा ,,,,,,

क्रंदन से आहत हृदय हुआ ,
तनिक भी आराम न ,
नीर भरा ,एक आह भरा ,
प्रतिपल, प्रतिक्षण मेरा  ,
अनुराग भी उन्माद सा ,
संगीत की लयमय अनुभूति ,
उन्माद भरी बेस्वाद सी ,
कितनी विरह ,कितनी वेदना ,
कितनी मिलन की पिपासा ,,,,,,,

पलकों पर हैं पल रहे ,
स्वप्न प्रियतम से मिलन के ,
नैन थक थक चूर हुए ,
तेरा पथ निहार कर ,
चिर उन्माद उर  मैं समाया ,
कट गया  घनघोर तिमिर ,
आस जागी फिर मिलन की ,
प्यासी थी पपीहे की तरह ,
स्वाति की एक बूँद को ,
कितनी विरह ,कितनी वेदना ,
कितनी मिलन की पिपासा ,,,,,,

नैन मगन हो गए ,
झर झर  बरसने लगे ,
दृगों से मोती !
पलकें सजी हैं व्रीड़ा के गहनों से ,
होंठों ने मुस्कुरा कर कहा ,
मेरा सर्वस्वा तो तुम ही हो ,बस तुम ही हो ,,,
कितनी विरह , कितनी वेदना ,
कितनी मिलन की पिपासा ,,,,,,,,


 VIRAH VEDNA



kal phir wahi raat thi ,,,

कल फिर वही रात थी ,,,, कल फिर वही रात थी , वारिश तेज हो रही थी , नई नई मुलाक़ात थी , कल  रात थी , तुम मिले...